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बुधवार, 30 सितंबर 2020

राधा रानी का जन्म नहीं हुआ था वो कृष्ण की तरह अजन्मी है उनका प्राकट्य स्थान कहा है? आइये जानते है l

राधा रानी का जन्मदिवस या प्राकट्य दिवस राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है‌‍ l भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रावल और बरसाना में धूमधाम से राधा रानी का जन्मदिवस मनाया जाता है l 

ऐसे हुआ था रानी का जन्म 
पुराणों के अनुसार आज से पांच हजार दो सौ साल पहले वृषभानु और कीर्तिदा के यहां राधा जी का जन्म हुआ था। वह मथुरा जिले के गोकुल महावन कस्बे के पास रावल गांव में रहा करते थे। पुराणों में तो यह बात भी कही गई है कि राधा ने ने अपनी मां के गर्भ से जन्म नहीं लिया था। राधा जी की माता ने अपने गर्भ में वायु को धारण कर रखा था। कीर्तिदा ने योगमाया की प्रेरणा से वायु को जन्म दिया था। लेकिन राधा जी ने अपनी स्वंय की इच्छा से वहां पर प्रकट हुई थी। राधा जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतरित हुई थीं 



 उस समय शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और सोमवार का दिन , अनुराधा नक्षत्र और मध्यान्ह काल के 12 बज रहे थे। जिस समय राधा जी का जन्म हुआ था। उस समय सभी नदियों का जल पवित्र हो गया था। सभी दिशाएं खुशी से झूम उठी थी। वृषभानु और कीर्तिदा ने अपनी पुत्री के जन्म पर लगभग दो लाख गाय का दान ब्राह्मणों को किया था।राधा जी के जन्म के बारे में एक और मत विद्वानों के द्वारा कहा जाता है। जिसके अनुसार वृषभानु जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे। उस समय एक सुंदर सी कन्या कमल के फूल पर तैर रही थी। जिसे वृषभानु अपने घर ले आए और उसका पुत्री के रूप में पालन - पोषण किया। माना जाता है कि राधा जी भगवान श्री कृष्ण से ग्यारह महिने बड़ी थी। लेकिन राधा जी ने तब तक अपनी आखें नही खोली थी। जब तक उन्होंने श्री कृष्ण के दर्शन नहीं कर लिए थे। वृषभानु और कीर्तिदा को यह जल्द ही पता चल गया था कि राधा जी अपनी आखें अपनी मर्जी से नहीं खोल रही है। यह देखकर उन्हें अत्यंत दुख हुआ। इसके बाद एक दिन जब यशोदा जी श्री कृष्ण के साथ गोकुल से वृषभानु और कीर्तिदा के घर आती हैं। तब दोनों ने यशोदा जी का बहुत ही आदर सत्कार किया।

अगर आप राधा रानी के प्राकट्य स्थान पर जाना चाहते हो यानी कि रावल ग्राम जाना चाहते हो तो इस लिंक पर क्लिक करके इस रस्ते से जा सकते हो 
https://goo.gl/maps/bPkzphRjdRKeP8V4A

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गोकुल ग्राम

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